सिंधिया भाजपा में शामिल होकर जुड़े परिवार की राजनैतिक मुख्य धारा से

उनके पिता माधवराव सिंधिया ने अपने क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा था


अब उन्हीं के पद चिन्हों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया


khemraj mourya
शिवपुरी। 1967 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा द्वारा ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया के स्वाभिमान को चोट पहुंचाई गई थी तो उसके प्रतिकार स्वरूप विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के 36 विधायकों को तोड़कर गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया था और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। उस घटना के 52 साल बाद फिर इतिहास दोहराया गया है। इस बार नायक बने हैं विजयाराजे सिंधिया के नाती ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्होंने कांग्रेस के 22 विधायकों को तोड़कर कमलनाथ को एक झटके में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।



52 साल पहले राजमाता किंग मेकर बनी थी। वहीं 52 साल बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया फिर उसी भूमिका में हैं। कमलनाथ सरकार के पतन में मुख्य भूमिका निभाने के साथ-साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने शाही सिंधिया परिवार की मुख्यधारा में भी लौटे हैं। राजनीति में सक्रिय इस परिवार के सदस्य चाहे वह राजमाता विजयाराजे सिंधिया हो, माधवराव सिंधिया हों, वसुंधरा राजे सिंधिया हों अथवा यशोधरा राजे सिंधिया सभी भाजपा या तत्कालीन जनसंघ के या तो सदस्य हैं अथवा कभी न कभी संघी विचारधारा के इस दल से जुड़े रहे हैं। राजनीति में 19 साल से सक्रिय ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी तक भाजपाई विचारधारा से दूर रहे थे। लेकिन अब भाजपा में शामिल होकर एक मायने में वह सिंधिया परिवार की राजनैतिक मुख्य धारा से भी जुड़ गए हैं। 
राजमाता विजयाराजे सिंधिया की राजनीति की शुरूआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से हुई। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजय हांसिल की। बताया जाता है कि वह चुनाव उन्होंने घूंघट में रहकर और सिंधिया परिवार के प्रति जन आस्था के बलबूते आसानी से जीता था। वह नेहरू परिवार के दबाव में कांग्रेस में आ अवश्य गई थी। लेकिन सक्रिय भूूमिका मेें उतनी नहीं थी। 1967 में प्रदेश के  मुख्यमंत्री कांग्रेस के डीपी मिश्रा थे, जो उस समय राजनीति के चाणक्य माने जाते थे। उस दौरान बस्तर के लोकप्रिय राजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को पुलिस ने राज महल में घुसकर गोलियों से  भून दिया था। पुलिस की गोलियों का शिकार कई अन्य निर्दोष लोग भी हुए थे और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी। ग्वालियर में भी पुलिस की गोली से दो छात्र मारे गए थे। पुलिस नृशंसता के विरोध स्वरूप राजमाता विजयाराजे सिंधिया मिलने के लिए भोपाल में मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा के पास गईं। बताया जाता है कि श्री मिश्रा ने उनके साथ कथित रूप से अपमानजनक  व्यवहार किया। इससे वह काफी आहत हुईं और उन्होंने कांग्रेस के 36 विधायकों को तोड़कर गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में संविद की सरकार बनवाई। वह चाहती तो स्वयं मुख्यमंत्री बन सकती थीं। लेकिन पदीय राजनीति से उन्होंने दूर रहना ही उचित समझा। इसके बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ से जुड़ी। 1971 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को भी जनसंघ की राजनीति में लाई और उन्होंने माधवराव सिंधिया को जनसंघ के टिकिट पर गुना से चुुनाव लड़ाया। माधवराव सिंधिया 1971 से लेकर 1977 तक जनसंघ में रहे और इसके बाद पहले वह निर्दलीय तत्पश्चात कांग्रेस में शामिल हो गए। राजमाता विजयाराजे सिंधिया की सुपुत्री वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे सिंधिया आज भी भाजपा की राजनीति से जुडी हैं। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति की शुरूआत अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया की तरह कांग्रेस से हुई। ज्योतिरादित्य सिंधिया 19 साल तक कांग्रेस में रहे और इस दौरान वह चार बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। परंतु 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से पराजित हुए। इस एक हार से कांग्रेस की राजनति में उनके विरोधी पूरी ताकत से सक्रिय हो गए और उन्होंने ज्योतिरादित्य को जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के नायक ज्योतिरादित्य ङ्क्षसंधिया थे और मुख्यमंत्री पद पर भी उनका अधिकार था। विधानसभा चुनाव में सिंधिया कांग्रेस की ओर से प्रचार अभियान समिति के चैयरमेन भी थे। लेकिन जीत के बाद भी दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने सांठगांठ कर उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ से दूर कर दिया। इसके बाद लोकसभा चुनाव में सिंधिया की पराजय से दिग्विजय सिंह और कमलनाथ खैमे के हौंसले और बुलंद हो गए। जिसके परिणाम स्वरूप सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी नहीं बनने दिया। आरोप है कि उनके समर्थक मंत्रियों के साथ भी दोयम दर्जे का व्यवहार भी किया जाता रहा और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने केबिनेट बैठक में उनके समर्थक मंत्रियों को फटकारा भी। कांग्रेस को सिंधिया वचन पत्र में दिए गए वायदों को निभाने की याद दिलाते रहे। लेकिन इसे अनुशासनहीनता मानते हुए सार्वजनिक रूप से कमलनाथ  ने यहां तक कहा कि यदि वह सड़क पर उतरते हैं तो उतर जाएं, उन्हें रोका किसने है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को यह भरोसा था कि सिंधिया अपमानित होते रहेंगे लेकिन कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। लेकिन बाद में साबित हुआ कि यह उनका भ्रम था। राज्यसभा चुनाव में भी सिंधिया के नाम पर अड़ंगे लगाए गए और रेस से सिंधिया के नाम को दूर करने के लिए प्रियंका गांधी तक का नाम उछाला गया। अपमान की जब सारी सीमाएं टूट गई तो अपनी दादी की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया का स्वाभिमान जागा और उन्होंने अपने डेढ़ दर्जन समर्थक विधायकों को हर कीमत पर अपने पाले में खड़े करने के लिए सहमत किया। बाद में इस सूची में असंतुष्ट चार विधायक और जुड़ गए। इसके साथ ही प्रदेश में सत्ता बदल गई और अपनी दादी की तरह किंग मेकर के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया उभर कर सामने आए। भाजपा  जैसी आज के संदर्भ मेें मुख्य धारा वाली पार्टी में शामिल होकर एक तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने स्व. पिता माधवराव सिंधिया का भी अनुकरण किया। माधवराव सिंधिया जिस समय कांग्रेस में शामिल हुए उस समय कांग्रेस देशभर में पूर्ण वैभव पर थी और न केवल वह केन्द्र में सत्ता में थी बल्कि देश के अधिकांश राज्यों में भी या तो कांग्रेस की सरकार थी अथवा जिन गिने चुने राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं थी, वहां वह नम्बर दो की हैसियत में थी। कांगे्रस के पास इंदिरा गांधी जैसा चमत्कारी नेतृत्व था और माधवराव सिंधिया ने कहा था कि मैं अपने क्षेत्र को विकास की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए कांग्रेस में शामिल हो रहा हूं। क्योंकि अन्य दल में रहते हुए मैं अपने क्षेत्र के लिए विकास के संदर्भ में कुछ नहीं कर पाता। उनकी यह सोच सत्य भी थी और कांग्रेस में रहते हुए स्व. माधवराव सिंधिया ने 1984 में रेल मंत्री बन इस क्षेत्र को गुना-इटावा रेल लाइन की अविस्मरणीय सौगात दी। जिसके कारण उनका संसदीय क्षेत्र रेल लाइन की मुख्य धारा से जुड़ा। स्व. माधवराव सिंधिया के सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही 19 साल से राजनीति में हैं। लेकिन उनके कांगे्रस में रहते हुए उनका क्षेत्र विकास की मुख्यधारा से कटा रहा। 2004 से लेकर 2014 तक केन्द्र में कांग्रेस की सरकार अवश्य रही। लेकिन उस अवधि में प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। जिस कारण सिंधिया जो योजनाएं केन्द्र सरकार से लेकर आए उसका सही क्रियान्वयन उनके संसदीय क्षेत्र में नहीं हुआ। सिंध जलावर्धन योजना और सीवेज प्रोजेक्ट का कष्ट यह क्षेत्र आज भी भुगत रहा है। वर्तमान में केन्द्र में भाजपा की सरकार है और प्रदेश में भी भाजपा सत्ता में है। केन्द्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया का मंत्री बनना तय माना जा रहा है और उनकी बुआ शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया प्रदेश सरकार में निश्चित रूप से मंत्री बनेंगी और केन्द्र तथा प्रदेश में सिंधिया परिवार के प्रतिनिधित्व का लाभ निश्चित रूप से इस समूचे क्षेत्र और अंचल को मिलेगा, ऐसी उम्मीद है।